रमजान विशेष (Ramadan Special) – जाने रोजा रहने के फायदे, कैसी बढ़ती है इम्युनिटी और कैसे रहते हैं आप बिमारियों से दूर।

 रमजान विशेष (Ramadan Special) – जाने रोजा रहने के फायदे, कैसी बढ़ती है इम्युनिटी और कैसे रहते हैं आप बिमारियों से दूर।

रमजान विशेष (Ramadan Special) :

(Ramadan) 2 अप्रैल शनिवार की शाम को जब रमजान (Ramadan) का चांद नजर आया उसके बाद से रमजान के पवित्र माह की शुरुआत हो गई। रमजान का महीना इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से 9वां महीना होता है। जिसे मुस्लिम समुदाय सबसे पाक (पवित्र) महीना मानता है। रमजान की पहली और आखरी तारीख को चन्द्रमान इस्लामिक कैलेंडर द्वारा निश्चित की जाती है।

मुस्लिम लोगो के आस्था और  विश्वास के अनुसार रमजान महीने की 27 वीं रात शब-ए-क़द्र को कुरान नाजिल (अवतरण) हुआ। इस लिये, इस पुरे महीने क़ुरान की तिलावट करना अर्थात कुरान को पढ़ना बहुत ही पुण्यकार्य माना जाता है। इस महीने में तरावीह की नमाज़ का आयोजन किया जाता है जिसमे पूरे महीने भर कुरान को पढ़ा जाता है। जिससे वो लोग जो कुरान को नहीं पढ़ सकते या वह पढ़ने में असमर्थ हैं उन्हें कुरआन-ए-पाक सुनने को मिलता है।

रोज़ा (उपवास)

रमजान (Ramadan) का महीना किसी वर्ष 29 दिन का होता है तो किसी वर्ष 30 दिन का होता है। इस महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग रोजा रहते है जिसे उपवास भी कहा जाता है। उपवास शब्द को अरबी में “सौम” कहते है, इसी वजह से इस महीने को अरबी में माह-ए-सियाम कहा जाता हैं। फ़ारसी भाषा में उपवास को रोज़ा कहा जाता हैं। भारत के जो मुसलिम समुदाय है उन पर फ़ारसी प्रभाव अधिक होने के कारण उपवास के लिए फ़ारसी शब्द का प्रयोग किया जाता है जिसे रोजा कहते है।

रमजान (Ramadan) माह की विशेषताएं 

  • महीने भर रोजा रखना
  • पुरे रमजान भर रात में तरावीह की नमाज पढ़ना
  • कुरआन की नियमतः तिलावट करना
  • अपने गांव और आस – पड़ोस के लोगो की उन्नति और विकास के लिए अल्लाह से दुआ करना और मौन व्रत रहना जिसे एतेकाफ़ बैठना कहते हैं।
  • जकात करना, किसी भी धर्म में जकात करना अर्थात दान देना बहुत ही पुण्य का काम बताया गया है, और रमजान में दान करना एक तरह से फर्ज है क्योकि अगर आप जकात करने के काबिल है तो आपको जकात जरूर देना चाहिए।

कुल मिलकर कहे तो रमजान (Ramadan) का महीना नेकियों का महीना है इसे पुण्यकर्मों का मौसम-ए-बहार (बसंत) कहा जाता है।

रमजान (Ramadan) माह की और भी बातें –

  • रमजान (Ramadan) का महीना हमारे समाज के गरीब और जरूरतमंद लोगो के साथ हमदर्दी का महीना है। इस महीने में अगर कोई इंसान किसी रोजादार को इफ्तार कराता है तो उसके गुनाह माफ हो जाते हैं। पैगम्बर मोहम्मद सल्ल. से आपके किसी सहाबी (साथी) ने पूछा- की अगर हममें से किसी के पास इतनी गुंजाइश न हो की किसी रोजेदार को इफ्तार करा सके तो क्या करें। तो हज़रत मुहम्मद साहब ने जवाब दिया कि अगर आपके पास कुछ भी नहीं है तो एक खजूर या पानी से ही इफ्तार करा दिया जाए।
  • रमजान (Ramadan) का महीना मुस्तहिक लोगों की मदद करने का महीना होता है। रमजान के तअल्लुक से हम सबको बेशुमार हदीसें मिलती हैं जिसे हम सब पढ़ते और सुनते रहते हैं लेकिन क्या हम इस पर अमल भी करते हैं। ईमानदारी के साथ हम खुद के अंदर झांक के देखे खुद से अपना जायजा लें कि क्या वाकई में हम लोग मोहताजों (जरुरत मंदो) और नादार लोगों की वैसी ही मदद करते हैं जैसी की हमें करनी चाहिए?
  • सिर्फ सदका और फित्र देकर हम यह समझने लगते हैं कि हमने अपना हक अदा कर दिया है पर ऐसा नहीं है सिर्फ सदका और फ़ित्र से ही हम लोगों की जरुरत को नहीं पूरा कर सकते और ना ही सिर्फ रमजान भर ही लोगों की मदद करनी चाहिए बल्कि आपको हर समय लोगों के मदद के लिए तैयार रहना चाहिए।
  • जब अल्लाह के राह में देने की बात हो तो हमें कभी कंजूसी नहीं करनी चाहिए। अल्लाह की राह में आप जितना खर्च करेंगे  उतना अफज़ल है। अगर कोई ग़रीब हो चाहे वह अन्य किसी भी धर्म के क्यों न हो, उनकी मदद करने की शिक्षा दी गयी है। दूसरों के लिए काम आना भी एक इबादत ही होती है यदि आप दूसरों की मदद करेंगे और उनके काम आएंगे तो अल्लाह आपको अपनी नेमतों से नवाजेंगे।
  • ज़कातसदक़ाफ़ित्रा, खैर ख़ैरात, ग़रीबों की मदद, दोस्त अहबाब में जो लोग ज़रुरतमंद हैं उनकी मदद करना ज़रूरी समझा जाता है और माना भी जाता है।
  • अपनी जरूरतों को कम करना और दूसरों की जरूरतों को पूरा करना आपके गुनाहों को कम और आपकी नेकियों को ज़्यादा कर देता है।
  • मुहम्मद (सल्ल) ने फरमाया है जो शख्स नमाज के रोजे ईमान और एहतेसाब (अपने जायजे के साथ) के साथ रखता है उसके सारे पिछले गुनाह माफ कर दिए जाएँगे और उसकी नेकियों में बरकत कर दी जाएगी। रोजा हमे खुद पर काबू करना सिखाता है  हमें परहेज करना सिखाता है। लेकिन आपने भी यह महसूस किया होगा की जैसे ही माहे रमजान आने वाला होता है, लोगों के मन में तरह-तरह के चटपटे और लजीज खाना खाने का तसव्वुर जागने लगता है।

सहरी और इफ्तार क्या होता है –

अगर आपको रोजा रखना है तो रोजा रखने से पहले यानि की सूर्योदय से पहले जब हम कुछ खाते है जैसे – खजूर, फल या अन्य कोई भी चीजे तो उसे सहरी कहते है और शाम को सूर्योदय के पश्चात जब हम कुछ खाते है जैसे खजूर खा कर या कोई भी खाने वाली वस्तु जो आपके पास मौजूद हो उसको खा कर आप अपना रोजा तोड़ते है तो उसे इफ्तार कहते है।

रमजान (Ramadan) विशेष में रोजे को लेकर कुछ माने-जाने लोगो के ख्याल व नजरिया

रमजान विशेष (Ramadan Special) – एक मशहूर अमेरिकी नावेल निगार आप्टन सिनवलेयर ने रो़जे को तंदुरुस्ती का दाता कहा है। सेहत की देखभाल को देखते हुए इन्होने कहा है की रोजा हमे कई तरह की बिमारियों से दूर रखता है।  प्रो.अरनाल्ड अरहिट एक अमेरिकी नेचुरोथेरोपिस्ट है जिन्होंने रो़जे की अहमियत के बारे में बताते हुए कहा है कि हम जब रोजा रहते है और जैसे ही खाना बंद करते है तो हमारी बॉडी जो नलियों के जाल से बना हुआ है वो सिकुड़कर अपनी कुदरती या कहे तो अपने प्राकृतिक हालत में आने लगती है।

ऐसे में हमारे शरीर में जो खून मौजूद रहता है उससे बेकार पानी निकलने लगता है और खून गाढ़ा होने लगता है। इससे हमारी बॉडी हलकी होने लगती है और रमजान के बीसवें दिन होने तक हर रो़जेदार अपने अंदर ताकत और मजबूती का अहसास करने लगता है।

एक अन्य डाक्टर ने भी कहा है की रोजा बलगमी बीमारियों का सबसे मुफीद इलाज है। महात्मा गांधी जी जिन्हे उपवास का आचार्य कहा जाता है उन्होंने कहा है कि जब कभी आप दुखी हो या मुसीबतों का सामना कर रहे हो और आप उसके टेंसन से दूर नहीं रह पा रहे है तो आपको उस समय अपना वक्त उपवास और इबादत में बिताना चाहिए।

(यंग इंडिया-25 सितम्बर, 1942) तिब्बी माहिरीन का भी यह अपना तजुर्बा है कि रो़जा रखने से शरीर में में ऊर्जा बनी रहती है और साथ में हृदय को भी आराम मिलता है जिससे आपका ब्लड प्रेशर भी normal रहता है।

रोजा रखने के फायदे

शुरुआत के दो रोज़े

पहले दिन में ही ब्लड शुगर का स्तर गिरता है यानी रक्त में से चीनी के ख़तरनाक असरात का दर्जा कम हो जाता है। दिल की धड़कन सुस्त पड़ने लगती है और रक्त का दबाव कम हो जाता है। नसें जमी हुई  ग्लाइकोजन को आज़ाद कर देती हैं। जिसकी वजह से शारीरिक कमज़ोरी का एहसास उजागर होने लगता है।

तीसरे से सातवे रोज़े तक

रमजान विशेष (Ramadan Special) शरीर की चर्बी टूट फूट का शिकार होती है और पहले मरहले में ग्लूकोज में तब्दील हो जाती है। कुछ लोगों के शरीर की चमड़ी मुलायम और चिकनी हो जाती है। शरीर भूख का आदी होने लगता है। और इस तरह वर्ष भर लगातार काम करने वाला हाज़मा सिस्टम छुट्टी मनाता है।white blood cells और इम्युनिटी में बढ़ोतरी शुरू हो जाती है। हो सकता है रोज़ेदार व्यक्ति के फेफड़ों में सामान्य तकलीफ़ हो इसलिए के ज़हरीले माद्दों की सफाई का काम शुरू हो चुका है। आंतों और कोलोन की मरम्मत का काम शुरू हो जाता है। आंतों की दीवारों पर जमा मवाद (कचरा) ढीला होना शुरू हो जाता है।

आठवें से पंद्रहवें रोज़े तक

रमजान विशेष (Ramadan Special) आप पहले से अच्छा महसूस करते हैं। दिमाग़ी तौर पे भी चुस्त और हल्का महसूस करते हैं। ये भी हो सकता है की कोई पुरानी चोट या ज़ख्म महसूस होना शुरू हो जाए। इसलिए कि आपका जिस्म अपने बचाव के लिए पहले से ज़्यादा एक्टिव और मज़बूत हो चुका होता है। जिस्म अपने मुर्दा सेल्स को खाना शुरू कर देता है। जिनको आमतौर से केमोथेरेपी से मारने की कोशिश की जाती है। इसी वजह से सेल्स में पुरानी बीमारियों और दर्द का एहसास बढ़ जाता है। इस सिस्टम को साइंस में Autophagy कहते हैं।

सोलहवें रोजे से तीसरे रोजे तक

जिस्म पूरी तरह भूक और प्यास को बर्दाश्त का आदी हो चुका होता है। आप अपने आप को चुस्त, चाक व चौबंद महसूस करते हैं।

Ramadan Special इन दिनों आप की ज़ुबान बिल्कुल साफ़ और सुर्ख़ हो जाती है। सांस में भी ताज़गी आ जाती है। जिस्म के सारे ज़हरीले माद्दों का ख़ात्मा हो चुका होता है। हाज़मे के सिस्टम की मरम्मत हो चुकी होती है। जिस्म से फालतू चर्बी और ख़राब माद्दे निकल चुके होते हैं। बदन अपनी पूरी ताक़त के साथ अपने फ़राइज़ अदा करना शुरू कर देता है।

बीस रोज़ों के बाद दिमाग़ और याददाश्त तेज़ हो जाते हैं। तवज्जो और सोच को मरकूज़ करने की सलाहियत बढ़ जाती है।

 

 

 

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