Shaheed Diwas 2022: देश की आजादी में क्या है इस दिन का योगदान, जानें भगत सिंह से जुड़े कुछ अनसुने फैक्ट्स

 Shaheed Diwas 2022: देश की आजादी में क्या है इस दिन का योगदान, जानें भगत सिंह से जुड़े कुछ अनसुने फैक्ट्स

Shaheed Diwas: भारत की आजादी की लड़ाई में अहम योगदान निभाने वाले भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को आज ही के दिन यानी 23 मार्च (1931) को अंग्रेजों ने फांसी की सजा दी थी, जिसके बाद देश की आजादी के लिए उन्होंने हंसते-हंसते अपने प्राण देश पर न्योछावर कर दिए थे. शहीद दिवस के मौके पर देश आज अपने वीर सपूत भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को दी श्रद्धांजलि दे रहा है.

क्यों मनाया जाता है शहीद दिवस।

भारत की आजादी के पीछे स्वतंत्रता सेनानियों ने बहुत संघर्ष किया है. भारत की आजादी की लड़ाई में अहम योगदान निभाने वाले भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को आज ही के दिन यानी 23 मार्च 1931 को अंग्रेजों ने फांसी की सजा दी थी, जिसके बाद देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते उन्होंने अपने प्राण देश पर न्योछावर कर दिए थे. देश के बहादुर क्रांतिकारियों और महान सपूतों द्वारा दिए गए बलिदान की याद में हर साल 23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है. बताया जाता है कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने महात्मा गांधी से अलग रास्ते पर चलते हुए अंग्रेजों से लड़ाई शुरू की थी. भारत के इन तीन सपूतों ने बहुत कम उम्र में देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया था. इस दिन का मकसद वीरता के साथ लड़ने वाले सेनानियों की वीर गाथाओं को लोगों के बीच लाना है. इनकी याद में और इन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए आज का दिन शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।

(प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी) ने ‘शहीद दिवस’ के अवसर पर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा, ‘देश के लिए मर मिटने का उनका जज्बा देशवासियों को हमेशा प्रेरित करता रहेगा.’ पीएम मोदी ने ट्वीट कर कहा कि, ‘शहीद दिवस पर भारत माता के अमर सपूत वीर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को कोटि-कोटि नमन. मातृभूमि के लिए मर मिटने का उनका जज्बा देशवासियों को सदैव प्रेरित करता रहेगा. जय हिंद!’

केंद्रीय गृह मंत्री (अमित शाह) ने एक ट्वीट में कहा कि, ‘तीनों की देशभक्ति ने विदेशी शासन के दौरान स्वतंत्रता की भावना जगाई और आज भी हर भारतीय को प्रेरित करती है.’


कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा, ‘भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ऐसे विचार हैं, जो हमेशा अमर रहेंगे.’

दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने लिखा, ‘देश के स्वतंत्रता आंदोलन के अमर प्रतीक शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के शहादत दिवस पर मैं उन्हें नमन करता हूं. देश के इन वीरों के अमर बलिदान का हर देशवासी सदैव ऋणी रहेगा.’

केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल (Piyush Goyal) ने ‘कू’ (Koo App) कर कहा, ‘मां भारती की सेवा, सुरक्षा एवं स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करने वाले अमर बलिदानी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को मेरा कोटि कोटि वंदन. अपने त्यागमयी जीवन से करोड़ों युवाओं में देशभक्ति की भावना जागृत करने वाले महान बलिदानियों का ये देश, सदैव ऋणी रहेगा.’

केंद्रीय सड़क परिवहन राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) ‘कू’ (Koo App) कर कहा, ‘मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करने वाले शहीद भगत सिंह जी, सुखदेव जी और राजगुरु जी के बलिदान दिवस पर उन्हें कोटि-कोटि नमन.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ‘कू’ (Koo App) कर कहा, ‘अपने त्याग व शौर्य से जन-जन में स्वाधीनता की अलख जगाने वाले मां भारती के अमर सपूत, महान क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव एवं राजगुरु को उनके बलिदान दिवस पर कोटि-कोटि नमन. आप सभी का सर्वोच्च बलिदान सभी को राष्ट्र सेवा हेतु सदैव प्रेरित करता रहेगा।

भगत सिंह जुड़े कुछ अनसुने फैक्ट्स। 

लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह ने सुखदेव के साथ मिलकर एक योजना बनाई और लाहौर में पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट को मारने की साजिश रची थी, लेकिन सही पहचान ना होने के कारण सहायक पुलिस अधीक्षक जॉन सॉन्डर्स को गोली मार दी गई थी.

जलियांवाला बाग हत्याकांड से भगत सिंह इतने परेशान थे कि उन्होंने घटनास्थल का दौरा करने के लिए स्कूल तक बंक किया था. बताया जाता है कि कॉलेज के समय वह एक शानदार एक्टर थे.

सिख होने के बावजूद भगत सिंह ने अपनी दाढ़ी मुंडवा ली और बाल कटवा लिए थे, ताकि जॉन सॉन्डर्स की हत्या को लेकर होने वाली उनकी पहचान ना हो सके. इस बीच वे लाहौर से कलकत्ता निकल गए थे.

भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने मिलकर दिल्ली के सेंट्रल असेंबली हॉल में बम फेंके और ‘इंकलाब जिंदाबाद!’ के नारे लगाए. उन्होंने इस दौरान भी अपनी गिरफ्तारी का विरोध नहीं किया था.

गिरफ्तारी के बाद जब भगत सिंह से पुलिस ने पूछताछ शुरू की, तब जाकर उन्हें पता चला कि जॉन सॉन्डर्स की हत्या में .

वहीं भगत सिंह ने बचाव के लिए अपने मुकदमे के समय कोई पेशकश नहीं की थी. उन्होंने इस अवसर का इस्तेमाल भारत की आजादी के विचार को प्रचारित करने के लिए किया था.

7 अक्टूबर 1930, यह वही दिन था जब भगत सिंह को मौत की सजा सुनाई गई, जिसे उन्होंने साहस के साथ सुना था. जेल में रहते समय भी उन्होंने विदेशी मूल के कैदियों के लिए बेहतर इलाज की नीति के खिलाफ भूख हड़ताल की थी.

24 मार्च 1931, जब भगत सिंह को फांसी दी जानी थी, लेकिन उन्हें 11 घंटे पहले ही 23 मार्च 1931 को शाम 7.30 फांसी पर चढ़ा दिया गया था. कहा जाता है कि कोई भी मजिस्ट्रेट फांसी की निगरानी करने को तैयार नहीं था.

बताया जाता है कि फांसी के समय भी भगत सिंह के चेहरे पर मुस्कान बरकरार थी. कहा जाता है कि उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ नारे लगाते हुए फांसी के फंदे को चुना था।

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Revolt News 24 Bureau

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